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संसार को रामकथा का सार समझना होगा

परसों यानी 06 अप्रैल को रामनवमी है। धार्मिक मान्यता है कि चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार का देश ही नहीं दुनिया में रह रहे हिन्दुओं और रामभक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता हैं। संसार के पालनहार भगवान विष्णु के सातवें अवतार प्रभु श्रीराम हैं। भगवान श्रीराम का आचरण त्याग व तपस्या का प्रतीक है। श्रीराम के चरित्र से सत्य, दया, करुणा, धर्म और मर्यादा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। विषम परिस्थितियों में भी किस तरह मानव को अपने जीवन को संचालित करना चाहिए यह समझने के लिए भगवान राम का चरित्र मार्गदर्शक है। विडंबना यह है कि हम नई पीढ़ी यह नहीं समझा पा रहे हैं।

युवा पीढ़ी क्रोध और कुछ भी न सहने की क्षमता से ग्रसित है। इससे समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है । वह खुलेपन के नाम पर नग्नता और बेशर्मी करने पर आमादा हैं। यह देखकर देश का भविष्य भी खतरे में लगने लगा है। श्रीराम और माता सीता के वनवास को लोग सिर्फ सुनते हैं लेकिन उसके पीछे का मर्म नहीं समझना चाहते। आजकल युवाओं को तो छोड़िए शादीशुदा दंपत्ति तक एक-दूसरे को दगा देने में लगे हुए हैं। बीते दिनों मेरठ में एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी। इस घटना के बाद ऐसी खबरों का आना लगातार जारी है। सौ टके का सवाल यह है कि क्या हम अपनी युवा पीढ़ी को भगवान, देवी-देवताओं और संतों के संदेश समझाने में इतने विफल हो चुके हैं कि वह अपने जीवन को संभाल नहीं पा रहे।

धर्म और अध्यात्म को लेकर जितना प्रचार-प्रसार हो रहा है क्या उसका एक प्रतिशत भी लोग अपने जीवन में उतार पा रहे हैं। शायद नहीं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि हम ऐसे अंधकार की ओर बढ़ रहे है जहां केवल रुसवाई है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि बच्चों को धर्म से जोड़ें और उसका पालन करना सिखाएं। आज के हाईटेक दौर में मस्तिष्क में ठहराव नाम की चीज खत्म होती जा रही है। इससे लोगों में सहने की क्षमता कम हो गई और युवा आक्रोश में आकर गलत निर्णय ले लेते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में सबसे ज्यादा डिप्रेशन के मरीज बढ़े हैं जिसका कारण यहां अव्यवस्था बताई जा रही है। अव्यवस्था से अभिप्राय यह है कि युवा तरक्की के दौड़ में भागते हैं और धर्म, ज्ञान व संस्कार अर्जित करने के लिए के उनके पास समय नहीं होता। वह विफल होने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं।इस वजह से किसी भी घटना व रिश्तों को समझ नहीं पाते। भारत में डिप्रेशन के मरीजों की संख्या कई कारणों से बढ़ने कारण तेज भागदौड़ भरी जिंदगी, मानसिक तनाव, काम का दबाव, सामाजिक और आर्थिक बदलाव, अकेलापन, और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी वजह भी है।

लेंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 19.73 करोड़ लोग विभिन्न तरह की मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हैं। इनमें 5 करोड़ लोग डिप्रेशन और 6 करोड़ लोग तनाव से ग्रसित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि स्ट्रेस या तनाव का दायरा इस आंकड़े से कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक तनाव और डिप्रेशन से परेशान रहने वाले ज्यादातर लोग वे शहरी युवा होते हैं जो कॉरपोरेट जगत में काम करते हैं। इस कारण 1990 के बाद भारत में सभी तरह के मानसिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। चिंता की बात यह है कि अधिकांश लोग तनाव और अवसाद को गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें लगता ही नहीं कि यह कोई बीमारी है। एक्सपर्ट का कहना है कि जिस तरह शरीर की बीमारियां होती हैं, उसी तरह मन की भी बीमारियां होती हैं। मन की बीमारियां जीवन की गुणवत्ता को बहुत खराब कर देती हैं। यदि महानगरों के संदर्भ में एक घटना से समझें तो बहुत कुछ समझ में आ जाएगा। यदि दो वाहनों की आपस में छोटी सी टक्कर भी हो जाती है तो वह एक-दूसरे पर इस तरह से लड़ते हैं मानो उन्होंने आपस में जायदाद छीन ली हो। पार्किंग विवाद में मर्डर तक कर देते हैं। ऐसी घटनाओं से यह तो तय हो जाता है कि मानव जीवन पर संकट का स्तर बहुत बड़ा होता जा रहा है। आज धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए देशभर में रामकथा हो रही है। रामकथा सुनने लाखों लोग पहुंचते हैं। वह कथा के सार को समझने का प्रयास तो करते हैं पर उसका पालन नहीं करते, लेकिन हमें आने वाली पीढ़ी को सुधारने के लिए उन्हें रामकथा का सार समझाना होगा।

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