दुनिया तेजी से बदलती है…। और उससे भी ज्यादा तेजी से बदलते हैं वे देश, जो अपने हित के लिए पूरी व्यवस्था बदलने का माद्दा रखते हैं। अमेरिका इस मामले में अकेला देश है, जो खेल का नियम अपने लाभ के लिए बनाता है। राष्ट्रपति ट्रंप अकेले उदाहरण नहीं हैं। कुछ लोग भले ही उनको सनकी मान रहे हों, पर इसके पहले भी अमेरिका फर्स्ट के नारे को साधने के लिए नियमों के साथ खिलवाड़ अमेरिकी हुक्मरानों ने किया है। पिछले चार दशकों में अमेरिकी मनमानेपन के शिकार कई देश हुए हैं। इराक, अफगानिस्तान, ईरान जैसे देश कुछ तो अपने कारण, और बहुत कुछ वाशिंगटन नीति के कारण ही तबाह हुए।
पिछली सदी के 90 के दशक में यह अमेरिका और उसके साथ जुड़े कुछ खास दोस्त ही थे, जिन्होंने डंकल प्रस्ताव लाकर पूरी दुनिया के व्यापार को एक साथ अपने इशारे पर चलने का कुचक्र रचने का सफल प्रस्ताव किया, कृषि पर ट्रिप्स और व्यापार पर ट्रिम्स लागू कर सभी देशों को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश की गई। ट्रिप्स प्रावधानों में यहां तक ज्यादती की गई, कि इन समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाला देश अपने गरीब किसानों को कोई सब्सिडी न देने पाए। एक तरफ अमेरिका और यूरोप अपने उत्पादों को दुनिया के बाजार में आसानी से उतारने के लिए अपने यहां भारी इनसेंटिव दे रहे थे और दूसरी तरफ भारत जैसे विकासशील देशों पर तरह के प्रतिबंध लगा रहे थे। जब देश में प्रधानमंत्री के रूप में भाजपा के सर्वशक्तिमान नेता अटल बिहारी वाजपेयी विराजमान थे, तब अमेरिका ने मात्रात्मक प्रतिबंध नियमों के बहाने कई वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब मदनलाल खुराना संसदीय कार्य मंत्री थे। उन्होंने मात्रात्मक प्रतिबंध का अमेरिकी फैसले का पुरजोर विरोध किया था, तब उनको अपना पोर्टफोलियो खोना पड़ा था। अमेरिका तब पाकिस्तान के प्रेम में था और अपना प्रभाव पाकिस्तान को भारतीय कोप से बचाने में भी करता था। तब जार्ज बुश ने पाकिस्तान को तो अपने हित साधने के लिए एफ 16 युद्धक विमान दे दिया, लेकिन भारत के लिए इनकार कर दिया।
राष्ट्रपति ट्रंप व्यापार के नए नियम बनाना और चलाना चाहते हैं। उनके लिए कोई देश उनका अपना नहीं है, भारत भी नहीं। तमाम विशेषज्ञों ने ये दावे किए थे कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों को निभाते हुए ट्रंप भारत के खिलाफ कोई आक्रामक रुख अख्तियार नहीं करेंगे। पर ये सारे कयास धरे के धरे रह गए। जो व्यवहार ट्रंप ईर्ष्यावश मैक्सिको के साथ कर रहे हैं, वही व्यवहार वह भारत के साथ भी करते दिख रहे हैं। जिस तरह से अमानवीय व्यवहार भारत के गैरकानूनी प्रवासियों के साथ ट्रंप प्रशासन ने किया, उसके बाद यह अपेक्षा बेमानी है कि ट्रंप, मोदी सरकार को कोई विशेष छूट देने की सोच भी रहे हैं। वह कोई मौका नहीं चूक रहे हैं, जहां भारत को लेकर चेतावनी वाले लहजे की गुंजाइश बनती हो। वह प्रधानमंत्री मोदी को अपने से ज्यादा हार्ड बार्गेनर तो बताते हैं, लेकिन यह कहना भी नहीं चूकते कि वह जल्दी ही इंपोर्ट ड्यूटी नई दिल्ली के खिलाफ भी लगाने जा रहे है। ट्रंप की नजर में भारत का ऑटो सेक्टर, इंजीनियरिंग सेक्टर, केमिकल इंडस्ट्री और कपड़ा इंडस्ट्री चुभ रही है। वह इन सभी क्षेत्रों पर अलग ड्यूटी बढ़ाने की धमकी दे रहे है। यह धमकी सच साबित हुई तो, संभव है कि भारत का निर्यात 30 प्रतिशत तक घट जाए। यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। अगले साल तक भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन की बनाने की मोदी की योजना को भी झटका लग सकता है ।
ट्रंप की एकतरफा कार्रवाई, अमेरिका के लिए कितनी लाभकारी होगी, इसे लेकर बहुत सारी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। ट्रंप ने जो भी कदम उठाए हैं, वे अभी तक फलीभूत नहीं हो पा रहे हैं। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सभी फैसले बिना सोच विचारे किए जा रहे हैं। किसी भी देश के साथ ट्रेड ड्यूटी या शुल्क को लेकर ट्रंप प्रशासन ने कोई वार्ता या समिट भी नहीं की है। इसलिए जिन देशों के खिलाफ ट्रेड ड्यूटी बढाई गई हैं, वे भी अब अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की तैयारी में हैं। कनाडा ने तो अमेरिका के कई प्रांतों को अपने यहां से दी जा रही बिजली रोकने की धमकी दी है। चीन भी अमेरिका को परेशान करने वाले कदमों की तैयारी कर रहा है। ट्रंप चाहे जितना शोर मचा ले, अंत में अकेले रहने का जोखिम नहीं उठा सकते।
भारत में मोदी सरकार अभी खामोशी अख्तियार किए हुए है। सभी संदर्भित मंत्रालय अपनी-अपनी तैयारी में लगे है। एक कूटनीतिक प्रयास के तहत देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ बातचीत में जुटे हुए हैं। इन सबसे अलग मोदी इस बात से आश्वस्त हैं कि यदि ट्रंप सरकार, चीन को अपना प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मानती है, और कोई अलायंस बनाती है तो भारत को अनदेखा नहीं कर सकती है।
हालांकि युक्रेन को झटका और रूस के साथ नजदीकियां ट्रंप के लिए एक नया विकल्प हो सकता है। युक्रेन से अमेरिकी मदद हटाने के एवज में रूस वाशिंगटन के नजदीक जाने से इनकार नहीं कर सकता और संभव है कि चीन के साथ अपने रणनीतिक संबंधों में भी फेरबदल करने को तैयार हो जाए, पर भारत की स्ट्रेजिक लोकेशन और चीन की काट के लिए बनाए गए रणनीतिक गठबंधन को अमेरिका नकार भी नहीं सकता। फिर भारत इस समय पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और खुद मोदी का कद बहुत ऊंचा हो चुका है। ऐसे में कोई भी देश भारत को सीधा अपने खिलाफ करने से गुरेज करेगा। …और ट्रंप भी भारत को नाराज नहीं करना चाहेंगे।