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उत्तराखंड में 93 दिन तक सजता है मां पूर्णागिरि का मेला

उत्तर भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध मां पूर्णागिरि मेले का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुभारंभ कर दिया। यह मेला 93 दिन चलता है। मेले में भारत के साथ ही नेपाल के आस्थावान भी देवी के श्री चरणों में श्रद्धा के पुष्प चढ़ाने आते हैं। मान्यता है कि यहां देवी सती का नाभि मंडल स्थापित होने से मां पूर्णागिरी सभी कष्टों को दूर कर हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती है। यही वजह भी है कि मेले में प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं।

चंपावत जिले में स्थित पूर्णागिरी मंदिर, समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर टनकपुर से लगभग 17 किलोमीटर दूर है। मंदिर को शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर माता सती की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। यहीं से काली नदी को शारदा नदी के नाम से पुकारा जाता है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है।

इतिहासकारों के अनुसार, 1632 में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी ने चंपावत के राजा ज्ञानचंद के साथ शरण ली थी। उनके सपनों में मां पुण्यगिरि ने दर्शन दिए और मंदिर निर्माण का आदेश दिया। चंद्र तिवारी ने मंदिर का निर्माण कराया और तब से यहां सात्विक व तांत्रिक दोनों प्रकार की देवी पूजाएं होती हैं। चैत्र नवरात्रि पर यहां देवी को पूजने नेपाल से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। यह भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है।

इस मंदिर का एक और नाम है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। मंदिर को झूठे का मंदिर भी कहते हैं। किवदंती है कि एक व्यापारी ने मां पूर्णागिरी से वादा किया था कि अगर उसकी पुत्र की इच्छा पूरी हुई तो वह एक सोने की वेदी का निर्माण करेगा। उनकी इच्छा देवी ने पूरी की। पुत्र की प्राप्ति तो हुई पर व्यापारी ने सोने की परत चढाने के साथ तांबे की एक वेदी बना दी। पूर्णागिरी मंदिर ऊंची चोटी पर स्थित है और यह मंदिर मल्लिकागिरी, कालिकागिरी और हमला चोटियों से घिरा हुआ है। भक्त पूर्णागिरी मंदिर के लिए निकलते समय भैरों बाबा के दर्शन जरूर करते हैं। माना जाता है कि भैरों बाबा की अनुमति से ही भक्त पूर्णागिरी तक पहुंचते हैं। अवलाखान या हनुमान चट्टी इस मंदिर के पास स्थित है। यहां से बस के जरिए मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां से टनकपुर शहर और कुछ नेपाली गांवों को भी देखा जा सकता है। इस मंदिर के पास ही बुराम देव मंडी स्थित है। यह स्थान पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।

सरकार की योजना

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्णागिरी मेले को साल भर आयोजित करने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि पूर्णागिरी मेला ऐतिहासिक मेला है और पूर्णागिरी के आसपास के मंदिरों को जोड़कर एक सर्किट तैयार किया जाएगा और इससे सालभर यात्रा चलती रहेगी।

हवाई सेवा : पूर्णागिरि से निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है। पंतनगर हवाई अड्डे से पूर्णागिरि तक टैक्सी उपलब्ध है। पंतनगर में एक सप्ताह में चार उड़ानें दिल्ली के लिए उपलब्ध हैं।

रेल सेवा : पूर्णागिरि चंपावत से 60 किलोमीटर दूर है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से पूर्णागिरि तक टैक्सी और बस आसानी से उपलब्ध है। टनकपुर लखनऊ, दिल्ली, आगरा और कोलकाता जैसे भारत के प्रमुख स्थलों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ट्रेन टनकपुर रेलवे स्टेशन के लिए उपलब्ध होती है और पूर्णागिरि टनकपुर के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग : पूर्णागिरि उत्तराखंड राज्य और उत्तरी भारत के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी आनंद विहार की बसें टनकपुर, लोहाघाट और कई अन्य गंतव्यों के लिए उपलब्ध हैं, जहां से आप आसानी से स्थानीय कैब या बस तक पहुंच सकते हैं।

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