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महाकुम्भ : संगम तट से जनेऊ खरीदने का है विशेष महत्व, जनेऊ धारण करने के कई लाभ

महाकुम्भ नगर, 10 फरवरी (हि.स.)। सनातन धर्मावलंबियों ने शरीर पर जनेऊ धारण को विशेष अध्यात्मिक और सामाजिक महत्व दिया है। कहते हैं कि इससे व्यक्ति मानव ब्रह्मा, विष्णु, महेश की छत्रछाया में रहता है। फिर बात जब तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और अदृश्‍य संगम तट की रेती से मिलने वाले जनेऊ की हो तो इसका महत्व ही कुछ अलग ही हो जाता है।

कुम्भ मेला क्षेत्र में जगह-जगह जनेऊ की पटरी पर लगी दुकानें दिख जाएंगी। पीले, सफेद और गेरुए रंग के भी जनेऊ लोग खूब खरीदते हैं। स्थानीय ही नहीं, सुदूर राज्यों से आने वाले लोग भी कुम्भ मेले से जनेऊ ले जाते हैं।

जनेऊ धारण करने वालों पर होती है हनुमान जी की ​विशेष कृपा : जनेऊ के आकार, प्रकार और रंग, सबका सनातन धर्म में अलग-अलग उल्लेख है। संगम क्षेत्र में मिलने वाले जनेऊ की देश भर में मांग हैं। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि बंधवा के लेटे हनुमान जी की विशेष कृपा जनेऊ धारण करने वाले लोगों पर होती है। इसीलिए श्रद्धालु संगमनगरी से जनेऊ लेकर जाते हैं और कांधे पर टांगकर पूरे साल धर्म-कर्म और सनातनी परंपराओं का निर्वहन करते हैं।

वर्ण के हिसाब से होता है जनेऊ : मूंज, सूत-कपास और रेशम, इन सभी से बने जनेऊ को पहनने की परम्परा है। ब्राह्मण मूंज के धागे का जनेऊ धारण करते हैं। हनुमान चालीसा में चौपाई भी है कि, कांधे मूंज जनेऊ साजे। ब्राह्मण जिस जनेऊ को धारण करते हैं उसे अंगुलियों में 96 बार लपेटकर मूंज से बनाया जाता है। इसे 96 चौआ भी कहतेे हैं। यानी चारों अंगुलियों में लपेटकर बनाया गया जनेऊ। ब्राह्मणों के अलावा क्षत्रिय, वैश्य समुदाय में जनेऊ संस्कार की उम्र निर्धारित है।

आवश्यक है जनेऊ : मेला क्षेत्र में जनेऊ की दुकान पर पहुंचे उज्जैन के दीपक शुक्ला बताते हैं कि जितना आवश्यक उनके लिए वस्त्र है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी वह जनेऊ को मानते हैं। कहा कि कर्म की उपासना के लिए जनेऊ आवश्यक है। मनुष्य के जीवन मेें सभी संस्कारों के साथ जनेऊ संस्कार भी शामिल है। इसका सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बड़ा ही महत्व है।

गोरखपुर से आये सोमेश बताते हैं, जनेऊ पहनना तो आवश्यक है। लेकिन उसके अनुसार दिनचर्या का पालन कठिन है। पूजन में, नित्य क्रिया में जनेऊ का विशेष महत्व है, जिसका वह पालन करते हैं। सीतापुर से आए रमेश कुमार बतातें हैं कि जब वह 16 वर्ष के थे तभी उनका जनेऊ संस्कार करा दिया गया था। घर का माहौल धार्मिक होने की वजह से जनेऊ उनके जीवन में रच बस गया है।

5 से 151 रुपये तक के जनेऊ : कुम्भ मेला क्षेत्र में पटरी पर जनेऊ और पूजा सामग्री की दुकानें सजी हैं। बाराबंकी से आये जनेऊ विक्रेता बाबू लाल मिश्रा ने बताया कि, जनेऊ वर्ण के हिसाब से बनाये जाते हैं। त्रिवेणी स्नान के बाद नया जनेऊ पहनते भी हैं, और खरीद कर अपने घर ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि, 5 रुपये की जोड़ी से लेकर मूंज का जनेऊ 151 रुपये तक में बिक रहा है। संगम लोअर मार्ग पर जनेऊ ​विक्रेता संजय मिश्रा बताते हैं, मूंज का जनेऊ उपनयन संस्कार के समय पहना जाता है, बाद में सूत का जनेऊ धारण किया जाता है। मूंज का जनेऊ सन्यासी धारण करते हैं। वो कहते हैं, कुछ लोग तो वर्ण के हिसाब से जनेऊ मांगते हैं, जिनको पता नहीं होता उनसे वर्ण पूछकर जनेऊ दिया जाता है।

जनेऊ धारण करने के लाभ : लखनऊ के आयुर्वेदाचार्य डॉ. अजय शर्मा बताते हैं कि आयुर्वेद में ऐसा उल्लेख मिलता है कि दाहिने कान के पास से होकर गुजरने वाली विशेष नाड़ी लोहितिका मल-मूत्र के द्वार तक पहुंचती है, जिस पर दबाव पड़ने से इनका कार्य आसान हो जाता है। मूत्र सरलता से उतरता है और शौच खुलकर होती है। कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जागरण होता है। कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।

डॉ. शर्मा बताते हैं, माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।

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