पिछले महीने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान पोषित दुर्दांत और कुख्यात आतंकवादियों ने निर्दोष पर्यटकों का लहू बहाकर फिर भारत के धर्य के बांध को तोड़ दिया। प्रतिक्रिया तो होनी थी। शांति समर्थक राष्ट्र को ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से संदेश देना पड़ा कि जो बेवजह टकराएगा उसे मिट्टी में मिला दिया जाएगा। मगर आतंकवाद के सारे फनों को कुचलने की जरूरत है।
जम्मू-कश्मीर दशकों से आतंक के साये में है। कुछ दशकों में आतंकियों ने देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाजार तो कभी किसी बस या ट्रेन में निर्दोषों के लहू से होली खेली है। आतंकवाद ने न केवल हजारों लोगों की जान ली बल्कि अनगिनत परिवारों को तबाह किया है। बच्चे अनाथ हुए, माताएं-बेटियां विधवा हुईं और बुजुर्गों की जीवन-संध्या से सहारा छिन गया। इन विभीषिकाओं के खिलाफ देश ने जो संघर्ष किया, उसी के सम्मान में हर साल 21 मई को राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाता है। यह दिन आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में शहीद हुए जवानों और नागरिकों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है।
इस दिन देशभर में लोगों को यह शपथ दिलाई जाती है कि वे हर प्रकार की हिंसा और आतंकवाद का विरोध करेंगे, शांति, अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांतों में विश्वास रखेंगे और देश की एकता, अखंडता व सामाजिक सद्भाव की रक्षा करेंगे। यह भी याद रखना चाहिए कि 21 मई 1991 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक महिला आत्मघाती हमलावर ने हत्या कर दी थी। इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला कर रख दिया था। उसी दिन की स्मृति में राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की शुरुआत हुई।
हाल के वर्षों में भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध जो नीति अपनाई है, वह पहले से कहीं अधिक कठोर, रणनीतिक और सशक्त हो चुकी है। विशेषकर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने जिस बहादुरी से अभियान चलाए हैं, उन्होंने आतंकी नेटवर्क को बड़ा झटका दिया है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद घाटी के हालात धीरे-धीरे पटरी पर आए हैं। सैकड़ों आतंकी मुठभेड़ों में मारे गए हैं और सुरक्षाबलों ने सीमाओं पर घुसपैठ की अनेक कोशिश विफल की हैं।
हालांकि पूरी तरह से आतंक का खात्मा अब भी शेष है। इसकी ताजा मिसाल 22 अप्रैल को अनंतनाग जिले के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में देखी जा सकती है। बैसरन घाटी में हुए इस हमले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद की जड़ें अभी भी पाकिस्तान में मौजूद हैं और वहां से संचालित आतंकी संगठन भारत की शांति व्यवस्था को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई थी। यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब घाटी में आतंकी घटनाओं में गिरावट दर्ज की जा रही थी, जो भारत की कूटनीतिक और सुरक्षा नीति की सफलता का संकेत थी।
इस नृशंस नरसंहार के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर (सैन्य अभियान) चलाकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की। इसमें लगभग 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया और उनके अनेक अड्डों को नष्ट किया गया। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनाया। साथ ही सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णायक फैसला लिया । अब यह विचार प्रबल हो गया है कि जब पाकिस्तान बार-बार आतंकियों को शरण देता है और भारत की नागरिक आबादी को निशाना बनाता है तो ऐसे में इस ऐतिहासिक संधि को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
भारत के सैन्य अभियानों ने न केवल प्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को नुकसान पहुंचाया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने उसे ग्रे लिस्ट में डालकर उसकी अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त दबाव बनाया है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थानों के सामने भारत ने बार-बार पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर किया है।
घाटी में हो रहे सकारात्मक बदलावों की जड़ में सुरक्षा बलों की बहादुरी के साथ-साथ स्थानीय जनता की बदली मानसिकता भी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब घाटी में स्थानीय युवाओं की आतंकी संगठनों में भर्ती में काफी गिरावट आई है। पहले जहां एक साल में दर्जनों युवाओं के लापता होने की खबरें आती थी, अब वह संख्या इक्का-दुक्का रह गई है। भारत की वर्तमान नीति ‘आतंक के प्रति शून्य सहनशीलता’ की है और इस नीति के हर पहलू में क्रियान्वयन दिख भी रहा है। अब आतंकी हमलों का जवाब केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहता बल्कि पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उनके ठिकानों को नेस्तनाबूद किया जाता है। यह बदलाव केवल सैन्य शक्ति के उपयोग का नहीं बल्कि जन-मन के दृढ़ संकल्प का परिचायक है।
बेशक आतंकवाद की कमर तोड़ी जा रही है लेकिन अब भी इसकी अंतिम परछाई को मिटाना बाकी है। जब तक देश का कोई भी कोना आतंक से मुक्त नहीं होता, तब तक यह संघर्ष जारी रहना चाहिए। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई केवल हथियारों से नहीं बल्कि समाज की एकजुटता, सूझबूझ और जागरुकता से ही जीती जा सकती है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि आतंकवाद केवल सीमाओं की समस्या नहीं बल्कि मानवता का साझा दुश्मन है। हम राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस के मौके पर न केवल शपथ लें बल्कि उसे व्यवहार में भी उतारें। हर व्यक्ति आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में सैनिक बने, चाहे वह सूचनाएं देकर सुरक्षा एजेंसियों की मदद करने की बात हो या बच्चों को कट्टरपंथ से दूर रखने की दिशा में पहल करने की। तभी हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर सकेंगे, जहां शांति, सद्भाव, एकता और विकास के मूल्यों की बुनियाद पर भविष्य की इमारत खड़ी होगी।




