📍 पटना, 13 जून (हि.स.) — जब शब्द और ध्वनि की दुनिया से कोई अंजान होता है, तब कला उसकी जुबान बन जाती है। ऐसा ही प्रेरक उदाहरण हैं सहरसा की निधि कुमारी, जिन्होंने मूक-बधिर होते हुए भी ब्लॉक प्रिंटिंग के माध्यम से न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि अपनी जिंदगी भी बदल डाली।
🎨 ब्लॉक प्रिंटिंग बनी अभिव्यक्ति का ज़रिया
जन्म से मूक-बधिर निधि ने महज 8 साल की उम्र में ब्लॉक प्रिंटिंग की परंपरागत तकनीकों को सीखना शुरू किया। लकड़ी के ब्लॉक से कपड़ों पर हस्तनिर्मित डिजाइन बनाने की इस विद्या में उन्होंने असाधारण निपुणता हासिल की।
🏛 शिक्षा और प्रशिक्षण से संवारी कला
निधि ने उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना में प्रशिक्षण प्राप्त कर इस पारंपरिक हस्तकला में गहराई से दक्षता पाई। उन्होंने जिला स्तरीय कला प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कार जीते और बिहार कला उत्सव जैसे मंचों पर अपनी कलाकृतियों का प्रदर्शन कर राज्य का गौरव बढ़ाया।
🌾 ग्रामीण जीवन, प्रकृति और लोक परंपराओं की अभिव्यक्ति
निधि की प्रिंट की गई कृतियाँ बिहार की ग्रामीण संस्कृति, प्रकृति, लोक जीवन और परंपराओं को जीवंत करती हैं। हर डिज़ाइन में भावनाओं की गहराई और रचनात्मक अनुशासन साफ झलकता है। उनके काम में शब्दों की नहीं, आत्मा की अभिव्यक्ति होती है।
🌟 प्रेरणा बनती निधि की कहानी
निधि कुमारी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि शारीरिक सीमाएं कभी प्रतिभा को रोक नहीं सकतीं। उनके दृढ़ संकल्प और समर्पण ने उन्हें एक हस्तशिल्प कलाकार ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बना दिया है।