प्रयागराज: हाईकोर्ट ने रद्द किया गिरफ्तारी वारंट
प्रयागराज, 3 सितंबर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पत्नी के भरण-पोषण की वसूली के लिए पति के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट को अवैध मानते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण की वसूली मनी डिक्री की तरह, सीपीसी की कानूनी प्रक्रिया अपनाकर ही की जा सकती है।
याचिका और पृष्ठभूमि
सहारनपुर निवासी परवीन कुमार उर्फ प्रवीण कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। पत्नी ने परिवार अदालत मेरठ में धारा 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता मांगा था। परिवार अदालत के आदेश का पालन न होने पर वसूली के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया। याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी कि सीधे गिरफ्तारी का आदेश देना अवैध है।
अदालत का आदेश और तर्क
न्यायमूर्ति संजय कुमार पचौरी ने आदेश में उच्चतम न्यायालय के रजनेश बनाम नेहा केस का हवाला देते हुए कहा कि भरण-पोषण वसूली की प्रक्रिया धारा 421 सीआरपीसी के तहत होनी चाहिए। कोर्ट ने परिवार अदालत मेरठ के गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया।
याची के पक्ष की जानकारी
याची के अधिवक्ता ने बताया कि पत्नी पिछले 10 वर्षों से बच्चों के साथ मेरठ में रहती हैं और उसने खुद को गृहणी दर्शाकर 30,000 रुपए मासिक गुजारा भत्ता तय करवाया था। याची गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं और नौकरी नहीं कर पा रहे। इस कारण बकाया भरण-पोषण करीब 35 लाख रुपये हो गया था।
अदालत की व्याख्या
कोर्ट ने कहा कि बकाया भरण-पोषण की वसूली केवल कानूनी प्रक्रिया का पालन करके की जा सकती है, सीधे गिरफ्तारी आदेश जारी करना कानून के खिलाफ है।