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बैसाखी: संस्कृति, संघर्ष और समर्पण का समागम

कृषि प्रधान देश भारत में बैसाखी पर्व का संबंध फसलों के पकने के बाद उसकी कटाई से जोड़कर देखा जाता रहा है। इस पर्व को फसलों के पकने के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। इसे विशेष तौर पर पंजाब का प्रमुख त्योहार माना जाता है। वैसे देशभर में बैसाखी को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सिख समुदाय बैसाखी से ही नए साल की शुरुआत मानते हैं। इस दिन एक-दूसरे को बधाइयां दी जाती हैं। पंजाब में किसान तब अपने खेतों को फसलों से लहलहाते देखता है तो खुशी से झूम उठता है। खुशी के इसी आलम में शुरू होता है गिद्दा और भांगड़ा का मनोहारी दौर। पंजाब में ढोल-नगाड़ों की धुन पर पारम्परिक पोशाक में युवक-युवतियां नाचते-गाते और जश्न मनाते हैं तथा सभी गुरुद्वारों को फूलों तथा रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाया जाता है।

उत्तर भारत और विशेषकर पंजाब तथा हरियाणा में गिद्दा और भांगड़ा की धूम के साथ मनाए जाने वाले बैसाखी पर्व के प्रति भले काफी जोश देखने को मिलता है लेकिन वास्तव में यह त्योहार विभिन्न धर्म एवं मौसम के अनुसार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘नबा वर्ष’ के नाम से मनाया जाता है तो केरल में ‘विशू’ नाम से तथा असम में यह ‘बीहू’ के नाम से मनाया जाता है। बंगाल में ‘पोइला बैसाखी’ भी कहा जाता है और वे अपने नए साल की शुरुआत मानते हैं। हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हजारों साल पहले इसी दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था इसीलिए इस दिन गंगा आरती करने तथा पवित्र नदियों में स्नान की भी परम्परा रही है।

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन आज भी अंग्रेजों की बर्बरता और जुल्मों की दास्तान बयां करता है। दरअसल, रोलट एक्ट के विरोध में अपनी आवाज उठाने के लिए इस दिन हजारों लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे। ‘रोलट एक्ट’ के तहत न्यायाधीशों और पुलिस को किसी भी भारतीय को बिना कोई कारण बताए और उन पर बिना कोई मुकद्दमा चलाए जेलों में बंद करने का अधिकार दिया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर भारतवासियों में इस कानून के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश उमड़ पड़ा था। इस काले कानून के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोगों की एक विशाल जनसभा हुई थी लेकिन अंग्रेज सरकार ने बहुत खतरनाक षड्यंत्र रचकर जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए लोगों को चारों ओर से घेरकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। उस दर्दनाक हत्याकांड में सैंकड़ों भारतवासी शहीद हो गए थे।

बैसाखी को सूर्य वर्ष का प्रथम दिन माना गया है क्योंकि इसी दिन सूर्य अपनी पहली राशि मेष में प्रविष्ट होता है और इसीलिए इस दिन को ‘मेष संक्रांति’ भी कहा जाता है। यह मान्यता रही है कि सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही सूर्य अपनी कक्षा के उच्चतम बिन्दुओं पर पहुंच जाता है और सूर्य के तेज के कारण शीत की अवधि खत्म हो जाती है। इस प्रकार सूर्य के मेष राशि में आने पर पृथ्वी पर नवजीवन का संचार होने लगता है। इस तरह बैसाखी खुशियों का त्योहार है। बैसाखी का पवित्र दिन हमें गुरु गोबिन्द सिंह जैसे महापुरुषों के महान् आदर्शों एवं संदेशों को अपनाने तथा उनके पद्चिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह संदेश भी देता है कि हमें अपने राष्ट्र में शांति, सद्भावना एवं भाईचारे के नए युग का शुभारंभ करने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए।

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