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‘सही कहा राहुल जी! देश को सच्चाई जानने का हक है’

फ्रांसीसी दार्शनिक और लेखक वॉल्टेयर कहते हैं, ”किसी भी व्यक्ति को उसके प्रश्नों से पहचानें, न कि उसके उत्तरों से। हमारे द्वारा किसी से भी पूछा गया प्रश्न यूं तो साधारण मालूम होता है, लेकिन यह हमारी संवेदनशीलता और चरित्र का भी मूल्यांकन करता है। इसलिए लिहाजा जब भी प्रश्न करना हो तो उससे पहले स्वयं से प्रश्न करना आवश्यक है।” पिछले लगभग 11 वर्ष में राहुल गांधी भारत सरकार और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रश्न पूछते रहते हैं। प्राय: राहुल गांधी के प्रश्नों का मंतव्य देश, सेना और सरकार की छवि धूमिल करना होता है। अपनी आदत से मजबूर राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विदेशमंत्री डॉ. एस. जयशंकर को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा किया है। एक तरह से कह सकते हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के सबसे बड़े नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर पर प्रमाण मांगे हैं।

ऑपरेशन सिंदूर पर प्रश्न पूछने के कारण राहुल गांधी पुन: एक बार पाकिस्तान में वहां के मीडिया की आंखों के तारे बने हुए हैं। राहुल की इस पोस्ट को पाकिस्तानी मीडिया में बड़े पैमाने पर प्रचारित किया जा रहा है। वहां कई टीवी डिबेट्स में इस पर चर्चा हो रही है। राहुल ने पोस्ट किया, ”विदेश मंत्री की चुप्पी केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि यह निंदनीय है। मैं फिर से सवाल पूछता हूं- हमने कितने भारतीय विमान खोए क्योंकि पाकिस्तान को पहले से जानकारी थी? यह चूक नहीं थी, यह एक अपराध था। और देश को सच्चाई जानने का हक है।”

वैसे यह कोई प्रथम अवसर नहीं है जब कांग्रेस या उसके नेता ने देश के गौरव, उपलब्धि और सेना के पराक्रम को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा किया है। बालाकोट एयर स्ट्राइक और उरी सर्जिकल स्ट्राइक के समय भी कांग्रेस ने सेना से प्रमाण मांगे थे। भारतीय सेना स्पष्ट कर चुकी कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत का कोई विमान हताहत नहीं हुआ। बावजूद इसके राहुल सेना के बयान को झूठा साबित करने में लगे हैं। ऐसा करके वो यह साबित करना चाहते हें कि भारतीय सेना सरकार के दबाव और कहने पर झूठ बोल रही है। सरकार आपरेशन सिंदूर को लेकर देशवासियों से कुछ छुपा रही है।

वास्तविकता यह है कि भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए जैसा विघ्वंस पाकिस्तान में किया है, उतना 1965 और 1971 के युद्ध में भी नहीं हुआ था। ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने जो किया वह चीन, तुर्किए और अमेरिका को भी सदमे में डालने वाला है। भारतीय सेना हर बार की भांति इस बार भी अतुलनीय, अपराजेय और अगम्य रही। कांग्रेस भी सच्चाई से अवगत है। लेकिन, मोदी सरकार को ऑपरेशन सिंदूर का कहीं श्रेय न मिल जाए, इसलिए वो क्षुद्र राजनीति पर उतर आई है। वास्तव में, कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करते करते प्राय: राष्ट्र विरोध पर उतर आती है।

यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष हिंदू पर्यटकों को निर्दयता से मारा। बावजूद इसके, राहुल गांधी और कांग्रेस ने पाकिस्तान की कड़े शब्दों में निंदा नहीं की? पाकिस्तान ही नहीं हमारे शत्रु चीन के साथ कांग्रेस के मधुर संबंध जगजाहिर हैं। कांग्रेस का चीनी कन्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू, डोकलाम विवाद के समय राहुल गांधी का चोरी-छुपे चीनी दूतावास के अधिकारियों से मिलना,चीनी झड़प के दौरान सरकार-सेना पर सवाल उठाना, सरकार की जगह पार्टी से परिवार के लोगों का चीन जाना, कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान चीनी अधिकारियों से गुपचुप मुलाकात करना यह सब कांग्रेस के साथ गांधी परिवार को संदेह के घेरे में खड़ा करता है।

11 नवंबर 2019 को तुर्किए की सरकारी न्यूज एजेंसी ‘अनादोलु’ की एक खबर के मुताबिक, भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तुर्किये में अपना एक विदेशी कार्यालय खोला है। यह वही तुर्किये है जो हमारे शत्रु पाकिस्तान को हथियार देता है। कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताता है। कश्मीर के आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी कहता है। ऑपरेशन सिंदूर के समय तुर्किये ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया। क्या ये भारत के खिलाफ खड़े देशों से मेल-जोल का हिस्सा है? क्या कांग्रेस तुर्किये के जरिए पाकिस्तान से बैकडोर संवाद कर रही थी? क्या ये भारत के खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र है?

राहुल जी, देश भी आपसे प्रश्न पूछना चाहता है। 1962 के युद्ध में कांग्रेस की सरकार ने हजारों वर्ग किमी जमीन चीन क्यों हड़पने दी? 1971 के युद्ध में कांग्रेस की सरकार अपने 54 वीर सैनिकों को पाकिस्तान से क्यों छुड़ा नहीं पाई? 1971 के युद्ध और शिमला समझौते से भारत को क्या हासिल हुआ? सिंधु जल संधि में भारत के हिससे का पानी पाकिस्तान को क्यों दिया गया? तुर्किये जैसे भारत विरोधी देश में आपकी पार्टी को आफिस खोलने की क्या जरूरत थी? चीन से गुपचुप मिलने और एमओयू साइन करने में कौन सा देश हित छिपा है? आतंकियों और उनके सरपरस्त पाकिस्तान के प्रति कांग्रेस का रवैया हमेशा नरम क्यों रहता है? देश को यह सच्चाई जानने का भी हक है।

राहुल जी, पिछले कुछ वर्षों में आपने कई बार विदेशी मंचों का प्रयोग भारत को लेकर विवादास्पद बयान देने के लिए किया है। इस पर आपकी पार्टी का यह तर्क रहा है कि वे भारत की ‘असली तस्वीर’ दुनिया के सामने रख रहे हैं। लेकिन, राहुल जी आलोचना और अपयश में एक सूक्ष्म अंतर होता है। एक राष्ट्रीय नेता को यह समझना चाहिए कि देश और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिए गए वक्तव्य केवल घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे देश की छवि, निवेशकों के भरोसे और वैश्विक कूटनीतिक संबंधों पर भी प्रभाव डालते हैं।

राहुल जी, पंजाबी के चर्चित कवि शिव कुमार बटालवी ने लिखा है- ‘चंगा हुंदा सवाल ना करदा मैंनूं तेरा जवाब लै बैठा।’ अर्थात प्रश्न न करना ही अच्छा रहता है क्योंकि प्रश्न के उत्तर में जो कहा गया वो प्रश्न करने वाले को ही ले बैठा अथवा उसे ही तोड़ डाला या समाप्त कर डाला। हमारे द्वारा पूछे गए किसी प्रश्न का कोई क्या उत्तर देता है और किस अंदाज में देता है यह तो हमारे वश में नहीं होता, लेकिन प्रश्न पूछना अवश्य हमारे वश में होता है। कई बार ऐसे प्रश्न पूछ लिए जाते हैं जिनसे सामने वाले का मूल्यांकन होने के बजाय पूछने वाले का ही मूल्यांकन हो जाता है।

राहुल जी, सच को कभी झुठलाया और छुपाया नहीं जा सकता। देश को सच जानने का हक है। जो सवाल ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आपने पूछे हैं उनका जवाब तो सेना पहले ही दे चुकी है। लेकिन सच की आड़ लेकर आप और आपकी पार्टी जो झूठ, अविश्वास, संदेह और भ्रम फैला रही है, उससे सेना और देशवासियों के मनोबल और विश्वास को ठेस पहुंचती है।

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