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काशी में मोरारी बापू के रामकथा आयोजन पर विवाद, सूतक में दर्शन और कथा को लेकर विरोध तेज

📍 वाराणसी, 16 जून (हि.स.) — आध्यात्मिक कथावाचक मोरारी बापू इन दिनों काशी में आयोजित रामकथा को लेकर धार्मिक संगठनों और संत समाज के निशाने पर हैं। आरोप है कि पत्नी के निधन के तुरंत बाद सूतक काल में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन, जलाभिषेक और रामकथा का आयोजन करना शास्त्रविरुद्ध है।


📜 क्या है विवाद की वजह?

  • मोरारी बापू की पत्नी का हाल ही में निधन हुआ था।
  • शास्त्रों के अनुसार, पति-पत्नी के बीच सूतक काल (दशाह) लागू होता है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठानों और देव-दर्शन पर रोक होती है।
  • बापू ने इसी अवधि में काशी में प्रवेश कर श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन किए और रामकथा का आयोजन शुरू किया।

📣 प्रतीकात्मक विरोध: “सुपुर्दे-खाक”

  • मच्छोदरी इलाके में स्थानीय नागरिकों और संतों ने रविवार को नारेबाजी करते हुए मोरारी बापू का प्रतीकात्मक दाह संस्कार किया — जिसे “सुपुर्दे खाक” कहा गया।
  • इसमें अतुल कुल, रमेश यादव, पंकज भारद्वाज, गौरी शंकर पांडेय, मनोज पांडेय समेत कई लोग शामिल रहे।

🧘‍♂️ संत समाज और संगठनों की प्रतिक्रिया

  • अखिल भारतीय मनीषी परिषद ने मोरारी बापू की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि:

“यह न केवल धर्मविरुद्ध है, बल्कि जन भावना और सनातन मर्यादाओं का उल्लंघन है।”

  • परिषद अध्यक्ष डॉ. विद्यासागर पांडेय ने धर्म ग्रंथ ‘धर्म सिंधु’ का हवाला देते हुए कहा कि सूतक के 10 दिनों में देव-दर्शन, पूजन, कथा वाचन तक वर्जित होता है।

🗣️ लोकनीति बनाम निजी आस्था

  • परिषद के उपाध्यक्ष शशि प्रकाश मिश्रा ने कहा:

“यद्यपि कोई व्यक्ति शुद्ध हो सकता है, लेकिन यदि उसका कार्य लोक-विरुद्ध है, तो वह न अनुकरणीय है, न स्वीकार्य।”

  • संगठन का कहना है कि हनुमानजी महाराज कथा के पहले श्रोता होते हैं, और सूतक में कथा आयोजित कर श्राद्ध धर्म की भी अवहेलना की गई है।

🙏 मोरारी बापू की क्षमा याचना

  • आलोचनाओं के बीच मोरारी बापू ने रविवार शाम कथा समापन के अवसर पर क्षमा मांगते हुए कहा:

“यदि मेरे दर्शन या कथा से किसी पूज्य व्यक्ति को ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं। हम संवाद करते रहेंगे और गाते भी रहेंगे। इसके लिए मैं विशेष ‘मानस क्षमा कथा’ भी कहूंगा।”


📌 विश्लेषण: शास्त्र, आस्था और सामाजिक चेतना के बीच संतुलन जरूरी

यह विवाद भारतीय सनातन परंपरा में धार्मिक अनुशासन और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के बीच संघर्ष की झलक देता है। जहां एक ओर मोरारी बापू जैसे प्रतिष्ठित संत कथा के माध्यम से मानस संदेश देते हैं, वहीं दूसरी ओर शास्त्रीय मर्यादाओं और जन भावना का उल्लंघन गंभीर चिंता का विषय बन जाता है।

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